Sunday, December 14, 2014

धुंधकारी की प्रेतयोनि से मुक्ति

प्रेतयोनि में रहते हुए धुंधकारी को अत्यन्त कष्ट उठाने पड़े। जब गौकर्ण तीर्थयात्रा से वापस आया तो धुंधकारी के प्रेत ने उससे मिलकर प्रेतयोनि से मुक्त कराने की प्रार्थना की। गौकर्ण ने गयाजी में धुंधकारी का श्राद्ध कराया किन्तु धुंधकारी को फिर भी प्रेतयोनि से मुक्ति नहीं मिली। उसने गौकर्ण से पुनः प्रार्थना की कि किसी भी प्रकार से वह उसे प्रेतयोनि से मुक्त कराये।

गौकर्ण ने बहुत प्रकार के प्रयास किये किन्तु धुंधकारी को मुक्ति मिलती ही नहीं थी। अन्त में गौकर्ण को यह पता चला कि श्रीमद्भागवत का सप्ताह परायण से किसी भी महापापी की मुक्ति हो सकती है। अतः गौकर्ण ने भागवत पुराण का सप्ताह परायण का आयोजन किया। आयोजन स्थल में सात गाँठ एक बाँस गाड़ दी गई जिसके भीतर घुसकर धुंधकारी भागवत कथा सुनने लगा। पहले दिन की कथा समाप्ति पर बाँस की एक गाँठ चटक कर फट गई। इस प्रकार से सात दिनों में बाँस की सातों गाँठें चटक कर फूटती गईं और अन्त में धुंधकारी को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल गई।

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