Friday, December 12, 2014

गोकर्ण की उत्पत्ति (Story of Gaukarn)

प्राचीनकाल में तुंगभद्रा नदी के तट पर एक रम्य नगर था। उस नगर में आत्मदेव नाम का ब्राह्मण रहता था जो कि धर्म, कर्म, भजन, पूजा-पाठ आदि सभी कर्मों में कुशल था। आत्मदेव की गृहणी सुन्दर तो थी किन्तु वह हठी और कलह प्रिय थी। उन दोनों की कोई भी सन्तान नहीं थी। जब आत्मदेव तथा उसकी पत्नी की अवस्था ढलने लगी और फिर भी कोई सन्तान नहीं हुआ तो एक दिन आत्मदेव अत्यन्त दुःखी होकर घर से निकल पड़ा। चलते-चलते वह एक तालाब के पास पहुँचा। तालाब का पानी पीकर थक जाने के कारण वह वहीं विश्राम करने के लिए बैठ गया। उसी समय उस तालाब के पास एक सन्यासी भी पहुँचे।

आत्मदेव ने उस सन्यासी की अभ्यर्थना की और उनसे सन्तान प्राप्ति का वर देने की याचना करने लगा। सन्यासी ने कहा कि हे ब्राह्मण, तुम्हारे भाग्य में सन्तान सुख नहीं है फिर भी मैं तुम्हें अपने योग बल से एक सन्तान प्रदान करूँगा। सन्यासी ने आत्मदेव को एक फल देकर कहा कि योगशक्ति से सम्पन्न इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना। इस फल को खा लेने पर वह एक अति सुन्दर, माता-पिता की सेवा करने वाला तथा उत्तम ज्ञान वाले पुत्र को जन्म देगी।

आत्मदेव प्रसन्न होकर घर वापस चला आया और अपनी पत्नी को पूरा वृत्तांत सुनाकर फल दे दिया। पत्नी ने कहा कि वह फल को खा लेगी। आत्मदेव उसके बाद कुछ दिनों के लिए प्रवास पर चला गया।

आत्मदेव के जाने के बाद उसकी पत्नी ने सोचा कि यदि मैं इस फल को खा लूँगी तो मेरे गर्भ में बच्चा आ जायेगा, मेरा पेट फूल कर बड़ा हो जायेगा, चलना-फिरना आहार- विहार आदि सभी जाते रहेंगे, नौ महीने तक कष्ट सहन करना पड़ेगा और फिर प्रसव का कष्ट तो मुझसे सहा ही नहीं जायेगा, हो सकता है प्रसव के कष्ट से मेरे प्राण ही निकल जाये, बच्चे का लालन-पालन भी तो एक कष्टकर कार्य है, मैं वह कैसे कर पाउँगी। यह सब सोचककर उसने फल को अपनी गाय को खिला दिया।

पति के वापस आने पर उसने झूठ-मूठ कह दिया कि उसने फल खा लिया था। ज्यों-ज्यों दिन बीतते थे, पत्नी की चिंता बढ़ते जाते थी कि अब मेरा झूठ पति पर खुल जायेगा। उसने अपनी छोटी बहन, जो कि गर्भ से थी, को अपनी समस्या बताई तो छोटी बहन ने कहा कि वह अपनी सन्तान को चुपचाप उसे लाकर दे देगी।

छोटी बहन के पुत्र होने पर वह उसे अपनी बड़ी बहन को दे गई और आत्मदेव ने यही समझा कि उसका पुत्र हुआ है। उस लड़के का नाम धुंधकारी रखा गया। कुछ काल बाद ब्राह्मण की गाय ने एक सर्वांग सुन्दर, स्वर्ण के समान रंग वाले दिव्य पुत्र को जन्म दिया। गाय के पुत्र का नाम गौकर्ण रखा गया। इस प्रकार से गौकर्ण का जन्म हुआ।

1 comment:

Unknown said...

अति सुंदर, ज्ञान वर्धक रचना